रिक्शे में अटल आडवाणी का प्रचार करने वाले वेंकैया बने उपराष्ट्रपति, जानें वेंकैया की कहानियां
वेंकैया नायडू कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी थे। कबड्डी का ये खेल ही वेंकैया को आरएसएस के करीब लाया।
वेंकैया नायडू कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी थे। कबड्डी का ये खेल ही वेंकैया को आरएसएस के करीब लाया।
वेंकैया नायडू बड़े भावुक नेता हैं। जब पार्टी ने उन्हें उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया तो वो खुश होने की जगह पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग में ही रोने लगे । उपराष्ट्रपति चुनाव में विजय से एक दिन पहले एनडीए के नेताओं ने उन्हें विदाई दी थी। वेंकैया पर लिखी एक किताव का विमोचन हुआ था और उस वक्त प्रधानमंत्री से लेकर कई नेताओं ने सांसदों को वेंकैया के किस्से सुनाए। उस कार्यक्रम में भी बोलते वक्त वेंकैया इमोशनल हो गए। भाषण देते वक्त वेंकैया ने खुद की किस्से सुनाए।
वेंकैया ने खुद बताया, “बचपन में जब अटल बिहारी वाजपेयी जी और आडवाणीजी मेरे गांव में आते थे, तब मैं उनकी रैले के लिए रिक्शे में घूमकर प्रचार करता था। मैं माइक पर अनाउंसमेंट करता था, आज शाम को कबड्डी मैदान में आम सभा होने वाली है। श्रीमान अटल बिहारी वाजपेयी जी आने वाले हैं, तरुण हृदय सम्राट.. आप आइए और सभा को सफल बनाइए। उस वक्त लोग उन्हें इस नाम से पुकारते थे।”
बहुत कम लोग जानते हैं कि वेंकैया खुद कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी थे। कबड्डी का ये खेल ही वेंकैया को आरएसएस के करीब लाया। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का राजनीति में आना खेल-खेल में शुरू हुआ था। 1963 में वह पहली बार आरएसएस की शाखा में आए। कबड्डी के शौक ने उन्हें शाखा तक पहुंचाया। उनकी मां का निधन हो चुका था। वो आरएसएस दफ्तर में ही रहने लगे। 1967 में पहली बार वेंकैया नायडू की मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी से हुई थी। जवान वेंकैया जबरदस्त तेलगु बोलते थे। वाजपेयी एक कार्यक्रम में अनाउंसर की जिम्मेदारी वेंकैया को मिली थी। अपनी किताब के लॉन्च के वक्त भी वेंकैया ने कहा था, “मैंने पार्टी को हमेशा अपनी मां का दर्जा दिया है। जैसा मैं हमेशा ये महसूस करता था कि पार्टी मेरी मां है और वो पार्टी देश चला रही है। “
वेंकैया नायडू जब पहली बार अटल बिहार वाजपेयी सरकार में मंत्री बने तब का भी एक किस्सा वेंकैया ने बताया। वेंकैया ने कहा, ” अटलजी ने कहा कि तुम कोई पोर्टफोलियो सरकार में चुन लो। “ मैंने उनसे कहा कि मैं इन पोर्टफोलियोज में इंट्रेस्टेड नहीं हूं। उन्हें थोड़ा अजीब लगा, पीएम कह रहे थे कि ये पोर्टफोलियो लो और मंत्री कह रहा था कि मुझे नहीं चाहिए। उन्होंने आखिर में कहा कि तुम्हें क्या चाहिए। मैंने उनसे कृषि मांगा, तब वो नीतीश जी के पास था और वे हमारे सहयोगी दल थे इसलिए, वो नहीं मिल पाया। फिर मैंने कहा कि ग्रामीण विकास दे दीजिए। अटल जी ने मुझसे पूछा कि सोचकर बता रहे हो ना? मैंने कहा जी।
वजह ये थी कि उस वक्त लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते थे। जब प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का विषय कैबिनेट में पहली बार गया था तो वित्त मंत्री राजी नहीं थे। अगली बार जब विषय आया तो मैं भावुक हो गया। मैं गांव से जुड़ा हूं, 3 किलोमीटर पैदल स्कूल जाता था। अटलजी ने कहा सबको बताओ। मैंने कहा सर ये बहुत जरूरी है। सड़क नहीं तो विकास नहीं होगा। गांव में कोई आएगा नहीं, बीडीओ, कलेक्टर, डॉक्टर, एक्टर और ट्रैक्टर.. कुछ नहीं आ पाएगा। आखिर में उस योजना की मंजूरी कैबिनेट ने दे दी।”